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Showing posts from January, 2009
फासला ख़्वाबों से निकल के रूबरू आओ तो जान लें तनहा मुझको छोड़ के जाओ तो जान लें। चांदनी बन धुप में छाओ तो जान लें प्यास मेरे दिल की बुझाओ तो जान लें। तस्कीन-ओ-करार दिल को दिलाओ तो जान लें शमन 'गर प्यार की जलाओ तो जान लें। बादलों को जुल्फ की हटाओ तो जान लें जलवा-ऐ-हुस्न दिखाओ तो जान लें। दूर हो क्यूं पास तुम आओ तो जान लें फासला नज़रों का मिटाओ तो जान लें। दूर से इशारे तुम क्यूँ तुम करती हो सितमगर हमसफ़र बन के साथ निभाओ तो जान लें. -- अवतंस कुमार ०१//०८/२००९ चाहत बिखरे आशियाने के तिनकों को संजोया था बरसों जतन से । जबसे देखा है उनको जीने की चाहत बढ़ गयी और तिनक फिर सिमटने लगे नए आशियाने के शक्ल में । -- अवतंस कुमार ०१/०८/२००९