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हादसा

अंधेरी रात में दबे पाँव किसी ने पलीते में आग लगा दी . टूटे दरीचे  सूनी गुमनाम गलियाँ पथरीली राहें. हर कोना, हर लम्हा तबाही और मातम का माहौल. सीने में खलिश, होठों पे प्यास आँखों में जलन, दिल में अंगार जज्बातों का गुबार आँसुओं का सैलाब और दिलों के ज़ख्म फिर से हरे हो उठे. टूटी खिड़की के शीशे के टुकड़ों को  समेटने की कोशिश की तो हाथ लहू-लुहान हो गए. चारदीवारी नापने की कोशिश की तो पैरों में छाले पड़ गए. पसीना पोंछा तो खून की बूँदें टपक पडीं. बाजू में झाँका तो लोग नए थे. अपना अक्स आईने में देखा तो चेहरा बदल गया था. भौचक नींद खुली और जगा मैं. हादसों की बस्ती में एक और हादसा हुआ.