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लोकनायक जय प्रकाश नारायण

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लोकनायक जय प्रकाश नारायण मन में बड़ी ललक थी।  साल भर बाद अपनी पत्नी और बिटिया के साथ पुनः अपनी जन्म-भूमि पटना जा रहा था।   सोलह घंटे की अंतर्राष्ट्रीय विमान यात्रा के बाद दिल्ली से पटना की पटना यात्रा को ले कर हम सबमें बहुत उत्साह था।  पर थकान अपना असर दिखा रही थी।  विमान की सीट से नीचे झाँकते-झाँकते न जाने कब झपकी आ गयी। “यात्री-गण कृपया ध्यान दें. कुछ ही क्षणों में हमारा विमान पटना के जय प्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने वाला है. आप अपनी सुरक्षा पेटी …” की घोषणा के साथ ही मेरी झपकी टूटी। विमान की खिड़की के बाहर देखा तो नीचे गंगा नदी का चाँदी सा पानी और महात्मा गांधी सेतु जनवरी की खुली धुप में चमक रहे थे। पलक झपकते ही हमारा विमान हवाई अड्डे पर खड़ा था। उतरने के लिए दरवाज़े से निकला तो बचपन की एक महत्वपूर्ण घटना मेरे जेहन में घूम गयी। मैं कोई नौ या दस वर्ष का रहा हूँगा उस वक्त। लोक नायक श्री जय प्रकाश नारायण अरसे के बाद पटना आने वाले थे। पूरे शहर में उत्साह का माहौल था। जत्था-का-जत्था हवाई अड्डे की ओर चला जा रहा था। जिसे देखो उसके मुंह पर जे.पी. की ही चर्चा। फसाद