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पहाड

पहाडों के पास जाने पर  अपनी क्षुद्रता का अहसास होता है  अपनी क्षण-भंगुरता का अहसास होता है  ये ऊंचे पहाड़ हैं न  न जाने कब से खड़े हैं अपनी जगह पर  और न जाने क्या-क्या नहीं देखा इन्होंने कितने मौसम बदले  कितनी आंधियां और बरसातें आयीं  कितने लम्हे गुज़रे  कितनी बार धरती  अपने अक्ष पर घूम गयी  और कितनी बार चाँद ने  बादलों से अठखेलियाँ खेलीं  पर ये पहाड़ आज भी वहीं खड़े हैं  चुप-चाप, गुमसुम, शांत  ये बेजान से दिखाने वाले पत्थर  क्या-क्या नहीं बोलते ये ऊंचे पहाड़ अपने दामन में  न जाने कितने राज़ छिपाये रखे हैं  अपनी मोटी परतों में  न जाने कितने रहस्य कितनी कहानियाँ  कोई इनसे पूछे तो सही!

पत्थर

पत्थर लोग कहते हैं पत्थरों पर निशान बनाना मुशलिक है पर मैंने पत्थरों पर लकीरें खिंची देखी हैं प्रकृति की कलाकारी भी देखी है पत्थरों पर। एक सधे हुए संगतराश की तरह लम्हा-दर-लम्हा, चपेट-दर-चपेट, रेत-दर-रेत सदियों की कशमकम और जद्दोजहद के बाद जो मनभावन मंज़र हवाओं ने तराशे हैं पत्थरों पर उनको देखा है मैंने। उसी संगतराश को पानी की लहरों और थपेड़ों से अनगिनत बुतों को तराशते भी देखा है। बाबा भोले की प्रतिमा से लेकर समुद्री पायरट और शाही महल से लेकर शांति स्तूपों तक सबकी छवियों को गढ़ते भी देखा है। धातुओं की परतों से सीपते पानी से सनी हुई रंग-बिरंगियी कूचियों से काढ़ी हुई मनभावन सतरंगी तस्वीरें या फिर क़ुदरती धागों की महीन कशीदाकारी भी उन्हीं पत्थरों पर देखी है। पत्थर सिर्फ़ मूढ़ पत्थर नहीं होते पत्थरों में भी जान होती है। एक कुदरती कैन्वस है पत्थर माज़ी का पन्ना और कहानियों की किताब भी। हमारे अतीत का आइना भी है पत्थर और सत्यम शिवम् सुंदरम भी। मैंने पत्थरों पर लकीरें खिंची देखी हैं और देखी है प्रकृति की कलाकारी भी पत्थरों पर। (Inspired by the rocks of the Pict