जो तनहा था, तनहा हूँ मैं पर इसका मुझको गम नहीं। जो साथी था, साथी हूँ मैं पर कोई हमदम नहीं। जो राही हूँ मंजिल है अपनी हौसला कोई कम नहीं। लम्हा-लम्हा कर गुजारें आज हैं कल हम नहीं। १२ जुलाई, २००९
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AruNodaya
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अरुणोदय _____________________ कितना क्षणिक है यह सब-कुछ अभी है और अभी नहीं लहराते समंदर का बुलबुला या आँधियों में टिमटिमाते दिए की रौशनी जीवन की क्षण-भंगुरता का अहसास हर दम। पल भर की ही तो बात है डाप्लर की आवाज़ से सारा कमरा गूँज रहा था, धुधुक, धुधुक, धुधुक, धुधूक Ultrasound वाली मशीन के परदे पर कुचालें मारते उसके नन्हें से पावों की एक झलक फिर उसके पंजों की धुंधली सी छाया। किताना चंचल,था कितना जीवन! कितना उत्साह,था कितना उललास! कितने सपने थे, कितनी आशा! और अब अचानक श्मशान की शान्ति है डाक्टर और नर्स जा चुके थे और उनके ही साथ पलायन हो चुकी थी हमारे अरमानों की दुनिया. उसका शांत, जीवन-हीन नीला बदन हमारी आंखों के सामने पड़ा है - निश्छल उसकी मर्म-भेदी आँखों में ही बंद हो चुके थे हमारे सपने पूर्ण विराम! इन्हीं दो पलों में उसने कितनी गहराई से छुआ हमें बादलों को चीर कर एक हल्की से झलक दिखाकर आस की एक किरण जगाकर चल पडा अरुण अस्ताचल की ओर छोड़ कर एक गहरा अँधेरा एक सूनापन खालीपन एकाकीपन! ७ जुलाई, २००९