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खुशियाँ - बिटिया रानी के लिए

ये छोटे-छोटे लम्हे ये बड़ी-बड़ी खुशियाँ. वो पहली बार तेरा करवट बदलना उठके सम्हलना चलना और गिरना उन प्यालियों के खनकने और टूटने की खुशियाँ. वो क्षण-भर को मुस्कुराना मेरी कानों को खींचना उन लम्बी रातों की कवायद फिर सोने की खुशियाँ. वो हाथी, घोड़े, और बुलबुल पकड़ना वो झूलों की पींगें और तारों को छूना उन बेतुके गानों पर नाचने की खुशियाँ. खुशियों की गठरी और खाबों की परियाँ बागों की तितली और फूलों की कलियाँ वो खिलखिलाहट, वो किलकारियाँ वो हँसना हँसाना तुमसे है रौशन मेरे खाबों की दुनियाँ.

दर्द

का से कहूं दरद मोरे दिल की दूर भयीं गलियाँ बाबुल की|| छूटे मीत कुदुम्ब अरु छूटे रिश्तों के बंधन भी टूटे छोटी पड़ी आँचल माई की का से कहूं दरद मोरे दिल की| उमड़-घुमड़ बदरा बरसाए बिजुरी से अम्बर भरी जाए न आई महक मालदा लंगड़े की का से कहूँ दरद मोरे दिल की| तीरथ व्रत त्यौहार सब छूटे चैता फगुआ औ' सावन के झूले चौखट देवालय की बनी परजन की का से कहूँ दरद मोरे दिल की| भैया-भगिनी दूर हुए अब सपने आँचल के चूर हुए अब फीकी पड़ी हुंकार पिता की का से कहूं दरद मोरे दिल की| अवतंस कुमार, २८ नवम्बर २००९

कद्र-दान

मय से बोझिल रूमानी रात में अफकारे महवश में डूबे तसव्वुर निहाँ सरगोशी किये चांदनी के हम-आगोश माशूक की जुल्फों में उलझे सितारों को चुनते-चुनते रूखे हिजाब से दुपट्टा जो उठा हम तो बा-खुदा परेशाँ हो गए। लफ्ज़ हुए महफूज़, साँसें हुईं गर्म और निगाहों का फलसफा जब होठों पै आके सिमटा हम तो बा-खुदा बे-इख्तियार हो गए। जुनूने मोहब्बत में लिपट के दामने यार से रफ्ता-रफ्ता किए इन्तेजारे सहर जो है हर सबे फुरकत का अंजाम सहर हम तो बा-खुदा कद्र-दान हो गए। -- अवतंस कुमार, २७ अगस्त 2009
जो तनहा था, तनहा हूँ मैं पर इसका मुझको गम नहीं। जो साथी था, साथी हूँ मैं पर कोई हमदम नहीं। जो राही हूँ मंजिल है अपनी हौसला कोई कम नहीं। लम्हा-लम्हा कर गुजारें आज हैं कल हम नहीं। १२ जुलाई, २००९

AruNodaya

अरुणोदय _____________________ कितना क्षणिक है यह सब-कुछ अभी है और अभी नहीं लहराते समंदर का बुलबुला या आँधियों में टिमटिमाते दिए की रौशनी जीवन की क्षण-भंगुरता का अहसास हर दम। पल भर की ही तो बात है डाप्लर की आवाज़ से सारा कमरा गूँज रहा था, धुधुक, धुधुक, धुधुक, धुधूक Ultrasound वाली मशीन के परदे पर कुचालें मारते उसके नन्हें से पावों की एक झलक फिर उसके पंजों की धुंधली सी छाया। किताना चंचल,था कितना जीवन! कितना उत्साह,था कितना उललास! कितने सपने थे, कितनी आशा! और अब अचानक श्मशान की शान्ति है डाक्टर और नर्स जा चुके थे और उनके ही साथ पलायन हो चुकी थी हमारे अरमानों की दुनिया. उसका शांत, जीवन-हीन नीला बदन हमारी आंखों के सामने पड़ा है - निश्छल उसकी मर्म-भेदी आँखों में ही बंद हो चुके थे हमारे सपने पूर्ण विराम! इन्हीं दो पलों में उसने कितनी गहराई से छुआ हमें बादलों को चीर कर एक हल्की से झलक दिखाकर आस की एक किरण जगाकर चल पडा अरुण अस्ताचल की ओर छोड़ कर एक गहरा अँधेरा एक सूनापन खालीपन एकाकीपन! ७ जुलाई, २००९
शब्द प्राण मुझे दिए तन में स्पर्श तेरा मैं कर पाऊँ अनुभव ... अधरामृत पीकर-चखकर संपर्क तुम्हारा, हे प्रियतमा! सानिग्ध्य -- दैहिक, लौकिक, और अलौकिक झंकृत हो उठे कंठ तार जिह्वा पर भी आई बहार दंत अधर भी हुए स्फुट पर हाय! शब्द नहीं मिले मुझको शब्द नहीं मिले मुझको॥ अवतंस कुमार, १४ मई २००९, क्रिस्टल लेक, इलिनॉय

ग़ज़ल

यह दिल मेरा चाहत तेरी का दीवाना है तू सोच मत यह सच नहीं अफ़साना है। दिल को तू मेरे देख न जा औरों पर मुझे नहीं अब तलक तूने पहचाना है। है जकड़ा मजबूरियों में कई यह बेचारा दिल समझ लिया तुमने की यह बेगाना है। जाओ जलाते शमां को तुम प्यार की निरंतर जलने को आएगा चला खींचा की यह परवाना है। मदहोश हूँ पीके पड़ा मैं प्यार की मय को साकी है तू, प्याला है तू, और तू ही मयखाना है। हूँ तेरा मैं, मेरी है तू - ये ऐलान ओ खुदाया एक हूँ मैं और तू है बाकी यह जालिम ज़माना है। बस, ऐ जानेमन! तू कर यकीन मुझपर अपनी तो बेदाग़ वफाई को बस जताना है। - अवतंस कुमार, ९ मई २००९। क्रिस्टल लेक, इलिनॉय
फासला ख़्वाबों से निकल के रूबरू आओ तो जान लें तनहा मुझको छोड़ के जाओ तो जान लें। चांदनी बन धुप में छाओ तो जान लें प्यास मेरे दिल की बुझाओ तो जान लें। तस्कीन-ओ-करार दिल को दिलाओ तो जान लें शमन 'गर प्यार की जलाओ तो जान लें। बादलों को जुल्फ की हटाओ तो जान लें जलवा-ऐ-हुस्न दिखाओ तो जान लें। दूर हो क्यूं पास तुम आओ तो जान लें फासला नज़रों का मिटाओ तो जान लें। दूर से इशारे तुम क्यूँ तुम करती हो सितमगर हमसफ़र बन के साथ निभाओ तो जान लें. -- अवतंस कुमार ०१//०८/२००९ चाहत बिखरे आशियाने के तिनकों को संजोया था बरसों जतन से । जबसे देखा है उनको जीने की चाहत बढ़ गयी और तिनक फिर सिमटने लगे नए आशियाने के शक्ल में । -- अवतंस कुमार ०१/०८/२००९