दर्द

का से कहूं दरद मोरे दिल की
दूर भयीं गलियाँ बाबुल की||

छूटे मीत कुदुम्ब अरु छूटे
रिश्तों के बंधन भी टूटे
छोटी पड़ी आँचल माई की
का से कहूं दरद मोरे दिल की|

उमड़-घुमड़ बदरा बरसाए
बिजुरी से अम्बर भरी जाए
न आई महक मालदा लंगड़े की
का से कहूँ दरद मोरे दिल की|

तीरथ व्रत त्यौहार सब छूटे
चैता फगुआ औ' सावन के झूले
चौखट देवालय की बनी परजन की
का से कहूँ दरद मोरे दिल की|

भैया-भगिनी दूर हुए अब
सपने आँचल के चूर हुए अब
फीकी पड़ी हुंकार पिता की
का से कहूं दरद मोरे दिल की|

अवतंस कुमार, २८ नवम्बर २००९

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