पतझड़
स्टर्नस वुड्ज़ की तो
अब समाँ ही बदल चुकी है कुछ।
हम यहाँ अक्सर
सैर को आया करते हैं।
दिन छोटे होने लगे हैं
ठंडी हवा में दंश है, तीखापन।
ऊँचे ऊँचे पेड़ों की हरियाली
और शामियानों जैसी छतरी
कब की जा चुकी है।
रंग बिरंगे पत्तों की मोटी परत
पगडंडियों पर जमा पड़ी है
बबूल, चिनार
और न जाने क्या क्या।
बाईं ओर वाले झुरमुट में
देवदार की सुइयों की
मुलायम मखमली दरी
और छोटे-बड़े रंग बिरंगे
कुकुरमुत्तों की पट्टी।
पेड़ों से गिरे पत्ते
अधिकांश सूखे, कुछ हरे
पाँव टखनों तक धँस जाते है
पत्तों के अम्बार में।
और सूखे पत्तों की
चरमराहट चमरौंधे जूतों जैसी
चरर मरर चर्र मर्र चरर मरर चर्र मर्र।
पेड़ों की झुरमुट के पीछे दूर
धुंधली मटमैली पृष्टभूमि में
बादलों पर छिटकी लालिमा लिए
सूरज चला जा राहा अस्ताचल को
शनैः शनैः।
पीछे से हवा का एक झोंका आया
और पगडंडियों के कुछ सूखे पत्ते भी
संग हो लिए।
~ अवतंस
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