स्टर्नस वुड्ज़ की तो अब समाँ ही बदल चुकी है कुछ। हम यहाँ अक्सर सैर को आया करते हैं। दिन छोटे होने लगे हैं ठंडी हवा में दंश है, तीखापन। ऊँचे ऊँचे पेड़ों की हरियाली और शामियानों जैसी छतरी कब की जा चुकी है। रंग बिरंगे पत्तों की मोटी परत पगडंडियों पर जमा पड़ी है बबूल, चिनार और न जाने क्या क्या। बाईं ओर वाले झुरमुट में देवदार की सुइयों की मुलायम मखमली दरी और छोटे-बड़े रंग बिरंगे कुकुरमुत्तों की पट्टी। पेड़ों से गिरे पत्ते अधिकांश सूखे, कुछ हरे पाँव टखनों तक धँस जाते है पत्तों के अम्बार में। और सूखे पत्तों की चरमराहट चमरौंधे जूतों जैसी चरर मरर चर्र मर्र चरर मरर चर्र मर्र। पेड़ों की झुरमुट के पीछे दूर धुंधली मटमैली पृष्टभूमि में बादलों पर छिटकी लालिमा लिए सूरज चला जा राहा अस्ताचल को शनैः शनैः। पीछे से हवा का एक झोंका आया और पगडंडियों के कुछ सूखे पत्ते भी संग हो लिए। ~ अवतंस
शब्द प्राण मुझे दिए तन में स्पर्श तेरा मैं कर पाऊँ अनुभव ... अधरामृत पीकर-चखकर संपर्क तुम्हारा, हे प्रियतमा! सानिग्ध्य -- दैहिक, लौकिक, और अलौकिक झंकृत हो उठे कंठ तार जिह्वा पर भी आई बहार दंत अधर भी हुए स्फुट पर हाय! शब्द नहीं मिले मुझको शब्द नहीं मिले मुझको॥ अवतंस कुमार, १४ मई २००९, क्रिस्टल लेक, इलिनॉय
सदियों पहले आए थे लुटेरे वहशी, दरिंदे आँखों में हैवानियत लिए और हाथों में तलवार एक पुस्तक और एक रसूल के नुमाइंदे। हज़ारों मंदिरें तोड़ीं रौंदा हमारे देवी-देवताओं को अपने पैरों तले। गजवा-ए-हिंद नारा था, इरादा था काफ़िरों की धरती को ‘पाक’ बनाने का। कल भी लुटेरे आए थे स्वामी अय्यप्पा का ब्रह्मचर्य तोड़ने उनके मंदिर को नापाक करने हमारे मान-स्वाभिमान का गला घोंटने हमारी भक्ति और आस्था को अपने पैरों तले कुचलने एक पुस्तक और एक रसूल के नुमाइंदे। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था कि सदियों पहले उनके परचम का रंग हरा था और कल रक्तिम लाल। ~अवतंस
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