शब्द
प्राण मुझे दिए तन में
स्पर्श तेरा मैं कर पाऊँ
अनुभव ... अधरामृत पीकर-चखकर
संपर्क तुम्हारा, हे प्रियतमा!
सानिग्ध्य -- दैहिक, लौकिक, और अलौकिक
झंकृत हो उठे कंठ तार
जिह्वा पर भी आई बहार
दंत अधर भी हुए स्फुट
पर हाय!
शब्द नहीं मिले मुझको
शब्द नहीं मिले मुझको॥
अवतंस कुमार, १४ मई २००९, क्रिस्टल लेक, इलिनॉय
प्राण मुझे दिए तन में
स्पर्श तेरा मैं कर पाऊँ
अनुभव ... अधरामृत पीकर-चखकर
संपर्क तुम्हारा, हे प्रियतमा!
सानिग्ध्य -- दैहिक, लौकिक, और अलौकिक
झंकृत हो उठे कंठ तार
जिह्वा पर भी आई बहार
दंत अधर भी हुए स्फुट
पर हाय!
शब्द नहीं मिले मुझको
शब्द नहीं मिले मुझको॥
अवतंस कुमार, १४ मई २००९, क्रिस्टल लेक, इलिनॉय
Comments
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी