शब्द

प्राण मुझे दिए तन में
स्पर्श तेरा मैं कर पाऊँ
अनुभव ... अधरामृत पीकर-चखकर
संपर्क तुम्हारा, हे प्रियतमा!
सानिग्ध्य -- दैहिक, लौकिक, और अलौकिक
झंकृत हो उठे कंठ तार
जिह्वा पर भी आई बहार
दंत अधर भी हुए स्फुट
पर हाय!
शब्द नहीं मिले मुझको
शब्द नहीं मिले मुझको॥

अवतंस कुमार, १४ मई २००९, क्रिस्टल लेक, इलिनॉय

Comments

bahut khoob avantas, vakai tareef ke liye shabd nahin mile mujhko, blog jagat men swagat hai.
शब्दों की खोज में...शब्दों से रची सुन्दर रचना...............
शब्‍दों की बुनावट मन को झंकृत करती है। ब्‍लाग की दुनिया में आपका स्‍वागत है।
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

गार्गी
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
बहुत सुंदर.हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मेरे ब्लोग पर भी आने की जहमत करें।

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