असमंजस





बड़ी असमंजस में हूँ आज
कि आख़िर सुनूँ तो किसकी सुनूँ
एक तरफ़ आसमान के विस्तार में 
पेड़ों में अँटका
कृष्णपक्षी प्रतिपदा का चाँद है
दूसरी तरफ़ मदिरालय की रुनझुन
और हाला से भरा प्याला

बित्ते भर दूर
मेज़ पर अपनी केहुनियों को टिकाए
और अपनी दोनों हथेलियों में
अपने बोझिल से चेहरे को थामे तुम
वक्त ठहर सा गया था घड़ी भर को
मैं जी सा गया था घड़ी भर को। 
(०१, वैशाख, कृष्ण पक्ष प्रतिपदा, विक्रम सम्वत् २०७७; अप्रैल ८, २०२०)


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